Saturday, January 17, 2015

हिंदी का चेतन भगत

हिंदी, मेरी मातृभाषा, परन्तु मैंने कभी हिंदी में कुछ लिखा नहीं। शायद इसलिए कि मेरी पढाई मुख्यतः अंग्रेजी में हुई। शायद इसलिए कि अाधुनिक तकनीक के साथ हिंदी में लिख पाना मुश्किल है। लिखना अब कलम, कागज़ का खेल नहीं रह गया है कि जब मन किया कलम उठाई और लिखने लगे। अब आपके पास एक गोद में रखने वाला कॉम्पुटर होता है जिसका कीबोर्ड हिंदी के लिए बना ही नहीं है। आप अंग्रेजी के अक्षरो में हिंदी लिखने की कोशिश करते है, जो कि भाषाओ के स्वर विज्ञान के कारण काफी मुश्किल है। स्वर विज्ञानं क्युकी मै इस लेख को लिखने (या टाइप) करने ले लिए लिप्यंतरण(ट्रांसलिटरेशन) तकनीक का सहारा ले रहा हूँ।

अब जब मैं लिखने बैठ गया हूँ तो ये सवाल उठ खड़ा हुआ है की क्या लिखू। इसके लिए मेरी हिंदी में लिखने की प्रेरणा का विवरण मैं करना चाहूंगा।

अभी कुछ दिन पहले मैंने प्रेमचंद की गोदान पढ़ी। प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सबसे ज्यादा चमकने वाले सितारों में से एक है। 19वी सदी के में हिंदी साहित्य की लालटेन जिन लोगो के हाथ में थी उनमे से इनका नाम सबसे आगे होगा। वापस गोदान पर आते हुए, मै सामान्यतः काल्पनिक कथाओं से ज्यादा अकाल्पनिक किताब पढ़ने की कोशिश करता हुँ। पर बचपन में स्कूल में पढ़ी हुई प्रेमचंद की "दो बैलो की कथा" एक ऐसी कहानी है जिसने मेरे स्मृति पटल पर अमिट छाप छोड़ी है। उसके अलावा मैंने प्रेमचंद की एक और कहानी "पूस की रात" भी पढ़ी थी और वो भी मुझे बहुत पसंद आई थी। शायद इसलिए मैं हमेशा से गोदान पढ़ना चाहता था। तो जब मैंने अमेज़न का किंडल खरीदा, सबसे पहले गोदान डाउनलोड की और पढ़ने लगा। गोदान एक साधारण किसान की कहानी है। मै ज्यादा विस्तार में तो विवरण नहीं करूँगा पर मेरे जैसे व्यक्ति, जिसकी इतिहास में रूचि है, उसके लिए ये उपन्यास एक 1930 के भारत के बारे में एक कक्षा के सामान है। यह किताब उस समय के किसान की, श्रमिक की, औरत की, जमींदार और मध्यम वर्ग की समस्याओं और सांस्कृतिक दोगलेपन के ऊपर एक नाटकीय टिप्पणी है।

ये किताब पढ़ने के बाद मैंने सोचा की हिंदी साहित्य को क्या हो गया है। कहा हैं आज के प्रेमचंद सरीखे कहानीकार? कहा हैं रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवि? मुझे राष्ट्रकवि दिनकर के बाद कोई हिंदी साहित्यकार याद नहीं आता जो लोकप्रिय हुआ हो। शायद कुछ लोग कुमार विश्वास के नाम का उल्लेख करें पर मुझे लगता है की वो एक सफल और लोकप्रिय कवि नहीं हैं बल्कि उनकी प्रेम रस की एक कविता "कोई दीवाना कहता है" सफल और लोकप्रिय है। पर शायद साहित्यकार इसलिए नहीं है की कोई साहित्य पढ़ने वाला नहीं है। हिंदी को एक चेतन भगत की दिरकार  है। चेतन भगत, जिनके उपन्यास व्यापक तौर पर पढ़े जाएं। चेतन भगत चाहे साहित्यिक तौर पर बहुत आदरणीय ना हो पर उनके "फाइव पॉइंट समवन" ने भारतीयों की पठन शक्ति में एक क्रांति का संचार  किया था। ऐसा नहीं है की भारतीय उससे पहले पढ़ते नहीं थे पर उनके इस उपन्यास के बाद भारत के लोगो ने, कॉलेज के छात्रों ने बड़े पैमाने पर पढ़ना शुरू किया। ये चेतन भगत ही थे जिनके उपन्यासों ने पढ़ने को एक कूल हॉबी बना दिया था। और उनकी सफलता ने बहुत सारे लेखको को प्रेरित किया और देखते ही देखते भारतीय लेखको की एक नयी नस्ल तैयार हो गयी। कुछ लोग ये अवश्य कह सकते है कि इस नस्ल के लेखको की कथाओ का कोई साहित्यिक मूल्य नहीं हैं। पर  सवाल साहित्यिक मूल्य का नहीं है,  सवाल है अस्तितव का। कुछ साल पहले तक कोई भारतीय बड़ा लेखक कलपना के आधार पर लिखता ही नहीं था और लिखता था तो या तो सरकारें उसे प्रतिबंधित( सलमान रुश्दी) कर देती थी या उसे कोई पढता ही नही था। पर अब लोग पढ़ने लगे हैं तो वो दिन दूर नहीं जब भारत में भी डान ब्राउन जैसे विश्व स्तर पर लोकप्रिय उपन्यासकार होंगे। पर अब हिंदी को भी ऐसे ही उपन्यासकारों की ज़रुरत है। कुछ लोग कोशिश कर रहे है जैसे ख़बरबाज़ी के नीरज और फेकिंग न्यूज़ के राहुल रौशन, पर ये लोग अभी तक सिर्फ व्यंग्य तक ही सिमित है। उम्मीद है की इनके जैसे लोगो की संख्या में वृद्धि होगी और हिंदी साहित्य को भी अपना आधुनिक चेतन भगत मिलेगा।

मैं पहले भी प्रेमचंद के बारे में यहाँ लिख चुका हुँ।